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जिस पर यक़ीं था उसका रवैया बदल गया / कृष्ण 'कुमार' प्रजापति

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जिस पर यक़ीं था उसका रवैया बदल गया
पीतल में जाने किस तरह सोना बदल गया

अनजान हो गया हूँ मैं अपनी निगाह में
आईना कह रहा है कि चेहरा बदल गया

इस दौर में बदल गयी लोगों की ख़ासियत
पंडित का मौलवी का भी हुलिया बदल गया

आराम के ख़याल से सोए थे एक साथ
आगे बढ़ी जो रात बिछोना बदल गया

मंज़िल की जुस्तज़ू में ग़लत हमसफ़र थे हम
अच्छा हुआ कि दोनो का रस्ता बदल गया

जिस दिन से आ गये हो मेरी ज़िन्दगी में तुम
जीवन गुज़ारने का तरीक़ा बदल गया

दामन शराफ़तों का हैं थामे हुए “कुमार”
हम आज तक वहीं हैं ज़माना बदल गया