भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीणो है तो / सांवर दइया

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:55, 22 फ़रवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सांवर दइया |संग्रह=मन-गत / सांवर दइया }} [[Category:मूल र…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आंख्यां आडा तिरवाळा
रूं-रूं में चबका
टूटूं-टूटूं सांसां कैयो-
घड़ी-खण खातर ढबज्या
पण
इणी बगत मांय सूं आयो उथळो-
इंयां हिम्मत हारियां
किंयां पार पड़सी
जीणो है तो
जूझणो पड़सी ।