भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीने के लिए मरना / नाज़िम हिक़मत

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:51, 4 नवम्बर 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीने के लिए मरना
ये कैसी स‍आदत<ref>तेजस्विता</ref> है
मरने के लिए जीना
ये कैसी हिमाक़त है

अकेले जीओ
एक शमशाद<ref>सर्व का पेड़, जो बिल्कुल सीधा होता है और जिससे अक्सर नायिका की उपमा दी जाती है</ref> तन की तरह
अओर मिलकर जीओ
एक बन की तरह

हमने उम्मीद के सहारे
टूटकर यूँ ही ज़िन्दगी जी है
जिस तरह तुमसे आशिक़ी की है।

शब्दार्थ
<references/>