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जीवणा है दिन चार जगत में / निमाड़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

   जीवणा है दिन चार जगत में

(१) सुबे से हरि नाम सुमरले,
    मानुष जनम सुधारो
    सत्य धर्म से करो हो कमाई
   भोगो सब संसार...
    जगत में...

(२) माता पिता और गुरु की रे सेवा,
    और जगत उपकार
    पशु पक्षी नर सब जीवन में
    ईश्वर आन निहारु...
    जगत में...

(३) गलत भाव मन से बिसराजो,
    सबसे प्रेम बड़ावो
    सकल जगत के अंदर देखो
    पुरण बृम्ह अपार...
    जगत में...

(४) यह संसार सपना की रे माया,
    ममता मोहे निहारे
    हरि की शरण मे बंधन जोड़े
    पावो मोक्ष दुवार...
    जगत में...