भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जीवन की एकाग्र पुकार / ईहातीत क्षण / मृदुल कीर्ति

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:23, 20 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुल कीर्ति |संग्रह = ईहातीत क्षण / मृदुल कीर्ति }} <poem> अ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अविराम श्रम करते,
वे जीवन के शिल्पी श्रमिक,
धर्म जिन्हें सहज ही करमा हो गया है.
ये तो जन्म जात अपरिग्रही हैं ,
अपरिग्रह का व्रत लेने का दंभ
इन्हें नहीं करना पड़ता ,
क्योंकि परिग्रह ही इन्हें अनजाना है.
प्रकृत धर्म की रेखा ,
सीधे श्रमिक से श्रमण की ओर ले गयी है.
केवल यही श्रमिक तो वे लोग हैं
जो केवल जीवित और सच्ची रोती खाते हैं..
गर्म खून से उठी सीधी ताजा सोंधी रोती,
पसीने से बहे नमक के बराबर
ही मिश्रित नमक,
उनकी भूक केवल तन की पुकार नहीं,
समूचे जीवन की एकाग्र पुकार है.
फ़िर भी कितने निरीह और सत्यान्वेषी ,
समग्र समन्वित दृष्टी का अनुरोध,
निश्छल और करुण दृष्टि उसके पीछे होती है.
नियंता को धन्यवाद के लिए उठी
कृतार्थ आंखें ,
समग्र कृतज्ञता
का जीवंत स्वरुप.
अविरल श्रम से उपजी सूखी रोटी ही,
जिनके जीवन की एकाग्र पुकार है