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जुनून-ए-इश्‍क की रस्म-ए-अजीब क्या कहना / मजीद 'अमज़द'

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जुनून-ए-इश्‍क की रस्म-ए-अजीब क्या कहना
मैं उन से दूर वो मेरे क़रीब क्या कहना

ये तीरगी-ए-मुसलसल में एक वक़्फा-ए-नूर
ये ज़िंदगी का तिलिस्म-ए-अजीब क्या कहना

जो तुम हो बर्क़-ए-नशेमन तो मैं नशेमन-ए-बर्क़
उलझ पड़े हैं हमारे नसीब क्या कहना

हुजूम-ए-रंग फरावाँ सही मगर फिर भी
बहार नौहा-ए-सद अंदलीब क्या कहना

हज़ार क़ाफिला-ए-ज़िंदगी की तीरा-शबी
ये रोशनी सी उफु़क के क़रीब क्या कहना

लरज़ गई तेरी लौ मेरे डगमगाने से
चराग़-ए-गोशा-ए-कू-ए-हबीब क्या कहना