भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जैसा मैंने कहा किया वैसा ही / दूधनाथ सिंह

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:06, 1 सितम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दूधनाथ सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जैसा मैंने कहा किया वैसा ही
खोले दुख के अंग —
सभी कुछ घायल ।
जीवन निरूपम मिला तुम्हें ओ,
किसने उसकी छाल उतारी
किया निर्वसन । छील-छाल कर
श्वेत रंग से दुहा ज़हर
ओ, दुहिता माता खड़ी भगवती
सब सिंगार सिधारे, धरती का
अवलम्ब लिए, कैसी हो
किसकी हो तुम नारी !
जिसकी चर्चा का विष-नगर
बिछाए, सारे मनु सारे कनु
चीख़ रहे हैं कामाख्या की
व्यथा–कथाएँ ।