भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जैसे-जैसे मैं बड़ा हुआ / बालकृष्ण काबरा 'एतेश' / लैंग्स्टन ह्यूज़

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:52, 27 नवम्बर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लैंग्स्टन ह्यूज़ |अनुवादक=बालकृ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत पहले की बात है
मैं लगभग भूल चुका था अपना सपना।
तभी वह था वहाँ
मेरे सामने
चमकते सूर्य की तरह —
मेरा सपना।

तभी खड़ी हुई दीवार
खड़ी हुई धीरे-धीरे
मेरे और मेरे सपने के बीच।
खड़ी होती गई दीवार आकाश छूने तक —

वह दीवार।
वह छाया।
मैं अश्वेत हूँ।
मैं लेटता हूँ इस छाया में।

और अब नहीं मेरे सामने मेरे ऊपर
मेरे सपनों का प्रकाश।
है केवल चौड़ी दीवार।
है केवल छाया।

ओ, मेरे हाथ!
ओ, मेरे श्यामल हाथ!
जाओ उस दीवार के पार!
खोज लाओ मेरा सपना!

मदद करो मेरी, इस अँधेरे को तोड़ने में,
इस रात को ख़त्म करने में,
इस छाया को सूर्य की सहस्र किर‌णों के प्रकाश में,
सूर्य के सहस्र आवेगमयी सपनों में
तब्दील करने के लिए!

अँग्रेज़ी से अनुवाद : बालकृष्ण काबरा ’एतेश’