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जैसे जैसे वो मेरे दिल में उतरते जाएंगे / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'

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जैसे जैसे वो मेरे दिल में उतरते जाएंगे
मैं समझता हूँ कि मेरे ज़ख़्म भरते जाएंगे।

तू सख़ावत कर मगर दुनिया से कुछ हरगिज़ न मांग
जी सकेगा शान से रिश्ते सुधरते जाएंगे।

उनकी खुशियों के लिए हमको अगर मौक़ा मिला
फूल बनकर राह में उनकी बिखरते जाएंगे।

अपनी किस्मत हाथ से अपने, लिखी तूने अगर
ज़िन्दगी पुर-नूर होगी दिन संवरते जायँगे।

अपना दावा है हमारे साथ होंगे वो अगर
हम सभी दुश्वारियों के पर कतरते जाएंगे।

सच किताबों से न निकला तब लिया यर फैसला
जो हमें अच्छा लगेगा हम वो करते जाएंगे।

मौसमे-ग़म की न की 'विश्वास' मैंने कोई फ़िक्र
जानता हूँ, ज़र्द पत्ते खुद ही झरते जाएंगे।