Last modified on 1 मार्च 2009, at 02:36

जो जंजीरें खुलीं / हरकीरत हकीर

प्रकाश बादल (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:36, 1 मार्च 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रात आसमाँ के घर नज़्म मेहमाँ बनी
चाँदनी रातभर साथ जाम पीती रही
बादलों ने जिस्‍म़ से जँज़ीरें जो खोलीं
नज़्म सिमटकर हुई छुईमुई-छुईमुई

ख्‍वाबों ने नज़्मों का ज़खीरा बुना
हरफ रातभर झोली में सजते रहे
नज्‍म़ टाँकती रही शब्‍द आसमाँ में
आसमाँ जिस्‍म़ पे ग़ज़ल लिखता रहा

वक्‍त पलकों की कश्‍ती पे होके सवार
इश्‍क के रास्‍तों से गुज़रता रहा
तारों ने झुक के जो छुआ लबों को
नज़्म शरमा के हुई छुईमुई-छुईमुई