भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज्ञान घटे ठग चोर की सँगति मान घटे पर गेह के जाये / अज्ञात कवि (रीतिकाल)
Kavita Kosh से
ज्ञान घटे ठग चोर की सँगति मान घटे पर गेह के जाये ।
पाप घटे कछु पुन्य किये अरु रोग घटे कछु औषध खाये ।
प्रीति घटे कछु माँगन तें अरु नीर घटे रितु ग्रीषम आये ।
नारि प्रसंग ते जोर घटे जम त्रास घटे हरि के गुन गाये ।
रीतिकाल के किन्हीं अज्ञात कवि का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।