भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
झूठे ई बनमाली / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:02, 10 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
जे परजीवी रस चूसै छै
की करतै रखवाली
हड़पी-हड़पी भोग लगावै
बैठी करै जुगाली।
लाज लगै नै डर लागै छै
पीटै हरदम ताली
चाहे केकर्हौ दूध मिलै नै
अपन्हैं खाय छै छाली।
फूल तोड़ि जे बाग उजारै
सबके नजरें जाली
रक्षक रे जहाँ बनै नित भक्षक
झूठे ऊ वनमाली