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टीस पेड़ू में उठी ऊही मिरी जान गई / रंगीन

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टीस पेड़ू में उठी ऊही मिरी जान गई
मत सता मुझ को दो-गाना तिरे क़ुर्बान गई

तुझ से जब तक न मिली थी मुझे कुछ दुख ही न था
हाथ मलती हूँ बुरी बात को क्यूँ मान गई

जूँ जूँ पहुँची है चमक बंदी का दम रुकता है
अब मिरी जान गई जान ये मैं जान गई

मैं तिरे पास दो-गाना अभी आई थी चली
मेरे घर में तू अबस करने को तूफ़ान गई

ज़हर लगती है मुझे ये तिरी चित्थल-बाज़ी
याँ तिरे आने से बाजी तुझे पहचान गई

तेरी रंगीं से कहीं आँख लड़ी सच कह दे
कुछ तो घबराई हुई फिरती है औसान गई