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टी०वी० से अख़बार तक ग़र सेक्स की बौछार हो / अदम गोंडवी

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टी०वी० से अख़बार तक ग़र सेक्स की बौछार हो ।
फिर बताओ कैसे अपनी सोच का विस्तार हो ।

बह गए कितने सिकन्दर वक़्त के सैलाब में,
अक़्ल इस कच्चे घड़े से कैसे दरिया पार हो ।

सभ्यता ने मौत से डर कर उठाए हैं क़दम,
ताज की कारीगरी या चीन की दीवार हो ।

मेरी ख़ुद्दारी ने अपना सर झुकाया दो जगह,
वो कोई मज़लूम<ref>जिस पर ज़ुल्म हो रहा है</ref> हो या साहिबे-किरदार<ref>प्रभावशाली व्यक्तित्व वाला</ref> हो ।

एक सपना है जिसे साकार करना है तुम्हें,
झोपड़ी से राजपथ का रास्ता हमवार हो ।

शब्दार्थ
<references/>