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ठहरा हुआ एहसास. / इला कुमार

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एक एक बीता हुआ क्षण

हाँ

पलों मे फासला तय करके वर्षो का

सिमट आता है सिहरनो में

बंध जाना ज़ंजीरों से मृदुल धागों में

सिर्फ़ इक जगमगाहट,


कितनी ज़्यादा तेज सौ मर्करी की रोशनियों से

कि

हर वाक्य को पढ़ना ही नहीं सुनना भी आसान

कितनी बरसातें आकर गई


अभी तक मिटा नहीं नंगे पावों का एक भी निशान

क्या इतने दिनों में किसी ने छुआ नहीं

बैठा भी नहीं कोई?


अभी भी दूब

वही दबी है जहाँ टिकाई थी, हथेलियाँ, हमने.