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ठहराव / मनीष मूंदड़ा

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मेरे काँधे पर
थका, सहमा-सा चाँद
बादलों का ठहराव मेरी आँखों में
हवाओं का थम जाना
मुझे छू कर
अब इस रात
मानो सभी शामिल हो गए हैं
मेरी इस थमीं, सहमी, ठहरी हुई जि़ंदगी में
मेरा साथ देने के लिए
मन मुझे पूछता है
ये चाँद, बादल और हवाएँ
क्या फिर से मेरे साथ चलने के लिए रुके हैं?
या हमेशा के लिए अलविदा कहने का इनका यह तरीका है?