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ठाकै बण्टा टोकणी (पनघट-गीत) / खड़ी बोली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

पनघट का गीत
ठायकै बंटा टोकणी ,कुएँ पै आई हो ।
कुएँ पै कोई ना,एक परदेसी छोहरा …
पाणी वाळी पाणी पिला दे, तुझै देखकै आया हो
हो इन बागों के मैं नींबू और केळे –सी मिलाई…
ठायकै बंटा टोकणी, कुएँ पै आई हो।
पाणी तो मैं जभी पिलाऊँ, माँज टोकणी ल्यावै
हो मेरी सुणता जइए बात बता दूँगी सारी हो…
बाबुल तो मेरा छाँव मैं बैट्ठा
अम्मा दे रही गाळी हो
हो मेरी भावज लड़ै लड़ाई, इतनी देर कहाँ लाई ।
ठायकै बंटा टोकणी, कुएँ पै आई हो
-ना तेरा बाबुला छाँव मैं, ना तेरी अम्मा दे गाळी हो हो ना तेरी भावज लड़ै
हो मेरी गूँठी ले जा
चल तेरी यही है निशानी,
ठायकै बंटा टोकणी, कुएँ पै आई हो।