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डर / निशान्त

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कितना कष्टपूर्ण है
किसी शोकपूर्ण व्यक्ति के पास
सांत्वना प्रदान करने जाना
विशेष कर जब
हम हों पूरे सुखी
दुःखी व्यक्ति को
दुःखी बनकर मिलें तो ठीक
उसूल के चलते
होना पड़ता है
जान बुझकर गमगीन
नहीं तो रहता है डर कि
अगला इसे
न ले ले कहीं अन्यथा
कभी कभी पूरी सावधानी के बावजूद
लगता है कि
चोरी हमारी पकड़ी जा रही
और यह भी कि
कहीं लग न जाए
हमारे सुखों को नजर