भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डरता चाँद / रमेश तैलंग

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:49, 15 फ़रवरी 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तैलंग |अनुवादक= |संग्रह=मेरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आसमान पर ही रहता क्यों
नीचे नहीं उतरता चाँ?
माँ! बतलाओ क्यों मुझसे
हर रात ठिठोली करता चाँद?

दूर-दूर ही चमका करते
ये झिलमिल-झिलमिल तारे।
पास बुलाऊँ तो शरमा
जाते हें सारे के सारे।
उनसे भी बादल में छुपकर
आँखमिचौली करता चाँद।

मैंने कहा, एक दिन मेरे
आँगन में भी आ जाओ।
मीठी-मीठी खा जाओ।
पर लगता है मेरे जैसे
छुटकू से भी डरता चाँद।