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डांखळा 2 / गणपति प्रकाश माथुर

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फूटरी ही काया, बेमाता फुरसत सूं घड़़्या।
निरखण चै’रो सीसै सामै घण्टां रैंता खड़्या।।
जुवानी जद जावण लागी।
तालरी लजावण लागी।।
अब काच में देखै, कता र्ैया अर कता झड़्या।।

बाबाजी एक आया, दीन्या प्रबचन धुआंधार।
असर हुयो लोगां पर छोड्यो दुराचार व्याभिचार।।
वकील अर पुलिसिया सै।
करै फिकर आपस में कै।।
ओ मोडियो कद छोड़सी ईं कस्बै री लार।।

मण्डी मैं दलाली करतो, अनाज री ‘सोभाग’।
परखी रा बचरका देवै, बोर्यां में बेथाग।।
गंऊं चांवळ री बांधै पोट।
बड़-बड़ चाबै बाजर मोठ।।
गैस बणतांई नीचै सूं बो, काढै सोरठ राग।।