भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

डिप्सोमेनिया / प्रदीप जिलवाने

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:04, 16 दिसम्बर 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप जिलवाने |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अँधेरे की शक्ल पहचानने लगा हूँ मैं
उजाले को आवाज से जानने लगा हूँ मैं

मगर समय की कोई झरी हुई पत्ती नहीं हूँ मैं
कि मैं फिर जन्म लेना चाहता हूँ
मुझे अपने गर्भ में जगह दे जिन्दगी।

(नशा करने की प्रबल इच्छा की स्थिति)