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तनहाइयाँ-2 / शाहिद अख़्तर

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तुम नहीं तो क्‍या
तुम्‍हारी याद तो है
उम्‍मीद के दरीचे को
खटखटाने के लिए...

छोटी-छोटी चीज़ें हैं
छोटी-छोटी यादें हैं
दिल की वीरान महफिल को
सजाने के लिए...

ज़िन्दगी के रहगुज़र पर
मैं अकेला कब रहा
जब कोई हमसफ़र ना रहा
तुम रही, तुम्‍हारी याद रही
इक काफ़िला बनाने के लिए...

याद का पंछी
मेरे दिल के कफ़स से
उड़ कर भाग नहीं सकता
ये दिल जो मेरा भी कफ़स है