भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तबीयत को मरगूब अब कुछ नहीं / मेला राम 'वफ़ा'

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:54, 11 अगस्त 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मेला राम 'वफ़ा' |अनुवादक= |संग्रह=स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तबीयत को मरगूब अब कुछ नहीं
सबब क्या बताऊं सबब कुछ नहीं

कभी एक तूफ़ान था सर-बसर
बुजज़ क़तराए खूं दिल अब कुछ नहीं

अयादत को आये तो आये वो कब
मरीज़े-तपे-ग़म में जब कुछ नहीं

करम आप का और मिरे हाल पर
सो पहले भी क्या था जो अब कुछ नहीं

तरदुद भी आख़िर कोई चीज़ है
मुक़द्दर ही दुनिया में सब कुछ नहीं

भरोसा हो दुनिया पे क्या ऐ 'वफ़ा'
तवक़्क़ो ही दुनिया से जब कुछ नहीं।

ग़ज़ल-46