भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तमाम उम्र सितम हमपे वो हज़ार करे / कांतिमोहन 'सोज़'

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:43, 9 नवम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कांतिमोहन 'सोज़' |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तमाम उम्र सितम हमपे वो हज़ार करे I
बस एक बार ज़मीर उसको शर्मसार करे II

कई हज़ार तरीक़े हैं ख़ुदखुशी के मियाँ,
बशर को अब नहीं लाज़िम किसी को प्यार करे I

हरेक बात पे तकरार ही नहीं अच्छी,
कभी तो प्यार का अन्दाज़ इख़्तियार करे I

सुना है उसको अज़ाबों का कोई ख़ौफ़ नहीं,
हमारा ज़िक्र भी ज़ालिम कभी-कभार करे I

हमारे बाद रक़ीबों पे कोई क़ैद न हो,
किसी भी हीले से जो चाहे ज़िक्रे-यार करे I

किसी भी हाल में जी लेंगे बेहया होकर,
कहाँ तलक कोई मरने का इन्तज़ार करे II