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तराना-ए-हिन्दी (सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोसिताँ हमारा ) / अल्लामा इक़बाल

लेखक: इक़बाल

~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~ सारे जहाँ से अच्छा हिन्दुस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं उसकी ये गुलसिताँ हमारा

ग़ुरबत में हों अगर हम रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी दिल हो जहाँ हमारा

पर्वत वो सब से ऊँचा हमसाया आसमाँ का
वो सन्तरी हमारा वो पासबाँ हमारा

गोदी में खेलती हैं जिस की हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिस के दम से रश्क-ए-जिनाँ हमारा

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा वो दिन है याद तुझ को
उतरा तेरे किनारे जब कारवाँ हमारा

मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दुस्ताँ हमारा

यूनान-ओ-मिस्र-ओ-रोमा सब मिट गये जहाँ से
अब तक मगर है बाक़ी नाम-ओ-निशाँ हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन दौर-ए-ज़माँ हमारा

'इक़बाल' कोई महरम अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को दर्द-ए-नेहाँ हमारा


रश्क=प्रतिस्पर्धा; जिनाँ=स्वर्ग; महरम=रहस्य वेत्ता; नेहाँ=गुप्त