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तलाश औज़ार की / शैलजा सक्सेना

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मुझे तलाश है एक औज़ार की
जिस से बदल सकूँ मैं चेहरे,
त्वचा का रंग,
अपने बच्चों का,
अपने पति का,
अपना और अपने जैसे और बहुत से भूरे लोगों का!

मुझे चाहिये ही वह औज़ार
जो मेरी सोच को मेरे शरीर पर गोद दे
मेरे इरादे को मेरे चेहरे पर लिख दे साफ़-साफ़!!

मुझे चाहिये ही वह औज़ार
क्योंकि वो शख़्स जब लेकर आयेगा बंदूक
हमें मारने, हमारे भूरे रंग के कारण,
जानता नहीं होगा हमारा देश, हमारा धर्म
हमारे नेक इरादे, इस मिट्टी में जड़ें बना चुकी हमारी सोच को..
वो सिर्फ़ पहचानेगा हमारी चमड़ी,
वो सिर्फ़ देखेगा हमारी शक़्ल,
और तय कर लेगा
कि हम उसी जमात के हैं
जिनका जीना खतरनाक है उसके और उसकी जमात के लिये!
वक़्त नहीं देगा वो हमें
अपना नाम या आखिरी इच्छा बताने की,
उसका डर तैरेगा हमारे खून पर!

क्या है तुम्हारे पास कोई औज़ार?
कोई विज्ञान ऐसा,
जिससे बदल लें हम अपनी शक्लें, अपनी त्वचा के रंग?
या गुदवा लें अपने इरादे अपने माथे पर?
हम, यानि
मैं, मेरे बच्चे, मेरे पति
और मेरे जैसे बहुत से भूरे भारतीय लोग!!