भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तस्कीन दे सकेंगे न जाम ओ सुबू मुझे / महेश चंद्र 'नक्श'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:51, 30 जून 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश चंद्र 'नक्श' |संग्रह= }} {{KKCatGhazal‎}}...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तस्कीन दे सकेंगे न जाम ओ सुबू मुझे
बै-चैन कर रही है तेरी आरज़ू मुझे

मुझ से तलाश-ए-राह की दुश्वारियाँ न पूछ
भटका रहा है ज़ौक-ए-सफ़र चार-सू मुझे

बज़्म-ए-असर-फ़रेब की तब्दीलियाँ तो देख
मग़मूम आ रहे हैं नजऋर ख़ूब-रू मुझे

तेरी नज़र न जान सकी मेरे दिल का हल
क्या मुतमइन करेगी तेरी गुफ़्तुगू मुझे

ऐ ‘नक्श’ इज़्तेराब-ए-दिल-ओ-जाँ को क्या करूँ
बर्बाद कर रहा है ग़म-ए-आरज़ू मुझे