भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तालमखाना / सुधा गुप्ता

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:45, 23 सितम्बर 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुधा गुप्ता }} {{KKCatKavita}} <poem> आएगा फिर हरा, सुगन्ध भरा …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


आएगा फिर
हरा, सुगन्ध भरा
ताल मखाना ।
श्वेत गुलाबी
खिले कमल-दल
पोखर फूला

भीनी खुशबू
सुरंग मधुरिमा
भँवरा भूला
हरित नाल
में लटक झूलता
ताल मखाना ।
कुछ दिन को
परिश्रमी बालक
रोज़ी पाएँगे

तैर-कूद वे
पोखर में घुसके
कुछ लाएँगे
हरी डिबिया
छिपा पड़ा है मीठा
ताल मखाना ।
कभी सिंघाड़े
कमल-फूल कभी
वे पा जाएँगे

दो-चार पैसे
बदले में मिलेंगे
कुछ खाएँगे
बेचेगा फिर
सजा टोकरी , बच्चा
ताल मखाना
-0-

मोटा पाठ