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तितली-2 / निरंकार देव सेवक

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दूर देश से आई तितली,
चँचल पँख हिलाती ।
फूल-फूल पर, कली-कली पर,
इतराती, इठलाती ।

यह सुन्दर फूलों की रानी
धुन की मस्त दीवानी ।
हरे-भरे उपवन में आई
करने को मनमानी ।

कितने सुन्दर हैं पर इसके,
जगमग रँग-रँगीले ।
लाल, हरे, बैंजनी, वसन्ती,
काले, नीले, पीले ।

बच्चों ने जब देखी इसकी,
ख़ुशियाँ, खेल निराले ।
छोड़छाड़ कर खेल-खिलौने,
दौड़ पड़े मतवाले ।

कहाँ–कहाँ से फूलों के रँग
चुरा-चुरा कर लाई ।
आते ही इसने उपवन में
कैसी धूम मचाई ।

अब पकड़ी तब पकड़ी तितली,
कभी पास है आती ।
और कभी पर तेज़ हिलाकर,
दूर बहुत उड़ जाती ।

डाल-डाल पर पात-पात पर
यह उड़ती फिरती है ।
कभी खूब ऊँची चढ़ जाती
फिर नीचे गिरती है।

कभी फूल के रस-पराग पर
रुक कर जी बहलाती ।
कभी कली पर बैठ, न जाने
गुपचुप क्या कह जाती ।

बच्चों के भी पर होते तो,
साथ-साथ उड़ जाते ।
और हवा में उड़ते-उड़ते,
दूर देश हो आते ।