भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तीरथराम कभी झूठ नहीं बोलते / उदय भान मिश्र

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:55, 25 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उदय भान मिश्र }} {{KKCatKavita}} <poem> तीरथराम क...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तीरथराम
कभी झूठ
नहीं बोलते!
सच के अलावा
वे कुछ भी नहीं बोलते!

अक्सर वे
मेरे यहां आते हैं,
हाल-चाल,
पूछते हैं
रोटी रोजगार की
टोह लेने के बाद
कचहरी,
मुकदमे पर
उतरते हैं!

बहुत दु:खी होते हैं
जब सुनते हैं
कि गवाह के अभाव में
मैं जीतता मुकदमा
हार सकता हूं!

तीरथराम
पिघल उठते हैं-
मैं मदद करने को
तैयार हूं।
गवाह
बनने को तैयार हूं
सिर्फ आप बताइए
मुझे क्या कहना है?
कहां-कहां कहना है’’

मैं चुपचाप सुनता हूं
तीरथराम को
एक टक देखता हूं!

तीरथराम कभी
झूठ नहीं बोलते
सच के अलावा
कुछ नहीं बोलते