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तुम / रमेश आज़ाद

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तुम मेरे लिए
ठीक वैसी ही हो
जैसे पक्षी के लिए पंख
नदी के लिए पानी
पानी के लिए नदी।

तुम मेरे लिए
चांद का टुकड़ा नहीं हो,
नहीं हो
आकाश से टूटे किसी अलौकिक नक्षत्र का तारा।
तुम मेरे लिए
इस धरती की
किसी मल्टीनेशनल कम्पनी के चीफ का
एप्वाइंटमेंट लेटर भी नहीं हो,
नहीं हो
लाटरी का लगा हुआ टिकट।
तुम तो वैसी ही हो
जैसी धूप में छांव
देह में पांव
और गांव से आई
अनपढ़ मां की चिट्ठी होती है।