भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम ऐसे तो न थे / सुनीता शानू

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:09, 9 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता शानू |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम ऎसे तो न थे
पहले कभी
हाँ पहले
जब तुम
तलाशा करते थे बहाने
मेरी
एक झलक पाने को

मेरे घर से होकर
न जाती थी
तुम्हारी राह कोई
फिर भी
तुम उसी रास्ते से
आते-जाते थे।

मेरी बातें मेरी हँसी
सभी कुछ तो था
तुम्हारी पसंद
मगर उस समय
हममें दूरी थी बहुत

कितना बोलती हो तुम
किस-किस बात पर
हँस लेती हो
तुम्हारी यही बात
अच्छी नहीं लगती मुझे

क्या सचमुच
तुम बदल गये हो!

तुम ऎसे तो न थे...