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तुम कब जागोगे / सुभाष राय

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तुम मेरे अपने हो, मैं तुम्हारा
बिछड़ गये हो लेकिन मुझसे
और भूल गये हो मुझे, खुद को भी
सच मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूं
तुम जानते हो या नहीं, मुझे पता नहीं
पर मैं हर क्षण देखता रहता हूं तुम्हें
बिल्कुल पास से, तुम्हारी ही आंखों से
सुबह-शाम, रात-दिन, हर पल, हर छिन

आज सुबह भी मैं देख रहा था तुम्हें
सोच रहा था, तुम भी मेरी ओर देखोगे
कुछ बोलोगे, हलो या धन्यवाद कहोगे
या मेरी ओर एक क्षण के लिए ही सही
देखकर बस थोड़ा मुस्करा दोगे
नहीं, न सही, समय इतना भी नहीं होगा
तो हाथ ही लहरा दोगे मेरी ओर

तुमने आंखें खोलीं तो मैं सिरहाने बैठा था
तुमने मेरी ओर ध्यान नहीं दिया
उठे और अपने काम निपटाने लगे
मैं बैठा रहा, सोचता रहा, शायद
आंखों पर पानी के छींटें मारकर
या नहा-धोकर, कपड़े बदलकर लौटो
तो मुझे देख पाओ, मुझसे बातें करो
लेकिन तुम्हारे पास बहुत काम थे
बेहद जरूरी, मुझसे भी महत्वपूर्ण
तुम स्नानघर से निकले तो निकल गये
बाहर सड़क पर, दौड़ते हुए
ओझल हो गये कुछ ही देर में
तब भी मैं कभी तुम्हारे आगे
कभी पीछे भाग रहा था
तुम रुके कुछ दूर जाकर
कुछ लोगों से बात करने लगे
मैं वहीं खड़ा था तुम्हारे बगल में

तुमने मेरी ओर देखा ही नहीं
कुछ और जरूरी काम याद आया तुझे
लौट पड़े घर की ओर
मैं चुपचाप तुम्हें देखता रहा
सोचा शायद घर पहुंचकर
तुम मुझे याद करो, मुझसे कुछ कहो
मैं तुम्हारे दरवाजे पर खड़ा था
तुम घर पहुंचकर कुछ देर

अपने कुत्ते से खेलते रहे

और फिर यकायक खो गये
किसी सोच में, किसी चिंता में
मेरे पास उसका समाधान था
पर तुमने मुझसे तब भी कुछ नहीं कहा

कुछ देर अखबार उलटते-पलटते रहे
कुछ ढूंढते रहे काले अक्षरों में
चेहरे पर सलवटें लिये हुए
फिर तुमने नाश्ता किया
अपना लेपटाप संभाला
गाड़ी में बैठे और चल पड़े
वक्त पर पहुंचना था दफ्तर
बहुत सारे काम निपटाने थे
नये कमर्चारियों से बातें करनी थीं
कंपनी के लिए नये डील पर
कल हुई बात आगे बढ़ानी थी
वकर्शाप में भी जाना था
बहुत सारी मेल भरी थीं इनबाक्स में
सब ध्यान से देखनी थी
क्या मालूम, किसमें
भाग्य परिवर्तन की सूचना हो


तुम बहुत व्यस्त थे पूरे दिन
अपने लिए भी तुम्हारे पास वक्त नहीं था
मैं फिर भी इस उम्मीद में था
कि शायद तुम अपने काम के बीच
थोड़ा ही सही वक्त निकाल लो
केवल पलक झपकाने भर का
आंखें बंद करने भर का
और तब शायद तुम्हें मेरी याद आ जाये
इसलिए मैं तुम्हारी कुर्र्सी के पीछे
दीवाल से सटकर खड़ा था
पर नहीं निकल पाया समय

शाम हो गयी इस तरह
तुम भोजन भी नहीं कर पाये
काम छोड़कर कैसे करते
थककर चूर हो गये थे
मैं देख रहा था तुम्हारी उबासी
पर मेरी आदत दखल देने की नहीं
मैं अपने बच्चों को प्यार करता हूं
पर उन्हें वह सब करने देता हूं
जो वे पसंद करते हैं, करना चाहते हैं
मैं सिर्फ उनकी प्रतीक्षा करता हूं
मैं यही कर रहा था सूर्योदय से
दोपहर तक, शाम तक, रात तक

आखिर तुम लौटे घर की ओर
घर आकर बिस्तर पर लुढ़क गये
आंख लग गयी, उनींदी सी आयी
मुझे लगा कि अब तुम शायद
मेरी ओर मुखातिब हो सको
एक पल के लिए ही सही
मेरी ओर देख पाओ
मुझे बड़ी आशा थी इस बार
तुम उठे, तुमने चाय पी
और टीवी चला दिया
कुछ खोजने लगे, इधर-उधर
सुंदरियों का नृत्य, कामेडी, सीरियल
समाचार, लाइव क्रिकेट, हारर-शो
नहीं जानता क्या चाहिए था तुम्हें
तुम इसी तरह दौड़ते रहे चैनलों पर
व्यर्थ या पता नहीं तुम्हारा कुछ मतलब हो

मैं सोचता रहा कि सोने से पहले
तुम जरूर मुझसे कुछ बातें करोगे
मुझे याद करोगे या मुझे ढूढोगे
मैं बिल्कुल तुम्हारे नजदीक था
तुम थोड़ा मुड़ते तो मुझे देख सकते थे
तुम छत से आकाश की ओर निहारते
या सितारों में तलाश करते तो देख लेते मुझे
पर नहीं, तुमने मेरी ओर नजर नहीं उठायी
खाना खाया और पड़ गये गद्दे पर
तुरंत गहरी नींद में गुम हो गये
तुम सो रहे थे जब भी मैं तुम्हारी खाट
के पास कभी खड़ा, कभी बैठा
बेसब्र इंतजार करता रहा पूरी रात
कहीं बीच में तुम्हारी नींद टूट जाय
और तुमको मेरी जरूरत महसूस हो
पर नहीं तुम्हें नींद ने निगल लिया था
मैं चिंतित हूं कि तुम कभी जाग नहीं सके
कभी सपनों से बाहर नहीं निकल सके
कभी सच जानने की कोशिश नहीं की
कभी खुद से नहीं पूछा अपना मतलब
जानना नहीं चाहा, तुम हो कौन
ऐसा करते तो मेरी याद जरूर आ जाती
कितना लंबा अरसा निकल गया
जब तुम मेले में मुझसे छूट गये थे
खुशियां भी आयी तुम्हारे द्वार
विचलित भी हुए तुम कई-कई बार
लेकिन दर्द से अपने पिता को पुकारा नहीं

कोई बात नहीं, कोई गिला नहीं
तुम मेरे अपने हो, मेरे हिस्से
तुमसे मैं नाराज नहीं हो सकता
तुम्हें घुड़क नहीं सकता
बिना मांगे सलाह भी नहीं दे सकता
मेरे पास वक्त ही वक्त है
मेरे पास धैर्य की भी कमी नहीं है
मैं तुम्हारा इंतजार कर रहा हू, करता रहूंगा

मेरे पास तुझे देने को बहुत है
तुझे सिखाने को बहुत है
धैर्य, क्षमा, प्रेम, परम स्वातंत्र्य
तुममें कुछ गुण हैं पहले से भी
मैंने ही तो सौंपा है जन्म के साथ तुम्हें
मैं चाहता था कि तुम मुझे याद रखो
मुझसे पल दो पल बतियाते रहा करो
कोई भी कठिनाई आये तो मुझे पुकारो
मेरे पास वह सब कुछ है
जिसके लिए तुम दिन भर भागते रहते हो
पसीना बहाते, हांफते, रोते, गुसियाते
मैं चाहता था कि मुझसे मांगो
मेरी बात सुनो, मुझसे बात करो
तुम नहीं कर पाये तो कोई बात नहीं
तुमसे मुझे कोई शिकायत नहीं

जब कभी तुम मुझे याद करोगे
बेचैन होकर मेरी ओर देखोगे
मुझसे बात करना चाहोगे
मिलना चाहोगे, धन्यवाद करना चाहोगे
तुम जहां भी होगे, मैं वहीं मिल जाऊंगा
साल, दस साल, सौ साल बाद
मृत्यु के बाद, ऐसे अनगिनत जीवन के बाद
जब भी तुम्हें मेरे लिए एक पल मिलेगा
मैं तुम्हें गले से लगा लूंगा, गोंद में उठा लूंगा
नहीं पूछूंगा कि क्यों मेरी याद नहीं आयी तुझे
सुख आया तो क्यों नहीं देखा मेरी ओर
दुख आया तो उलाहना क्यों नहीं दी

अंधेरा आया, चला गया
उजाला आया, निकल गया
दिन गया, रात भी गयी
सुबह होने को है, मैं फिर खड़ा हूं
तुम्हारे जागने के इंतजार में
ऐसा ही तो होता आया है मेरे प्यार में