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तुम जब मिली मुझे तो आया नया सवेरा / अवधेश्वर प्रसाद सिंह

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तुम जब मिली मुझे तो आया नया सवेरा।
अब तो नहीं रहा है कोई यहाँ बखेरा।।

आफत नहीं बनूँ मैं तेरे सिवा किसी की।
तेरी निगाह में बस मेरा रहे बसेरा।।

मेरा गुनाह क्या है कुछ तो मुझे बताओ.
तेरे बिना फिरूँ मैं बनकर यहाँ सपेरा।।

करता निगाहदारी तेरी गली किनारे।
झांको ज़रा निकलकर घनघोर है अँधेरा।।

बनती कहाँ ग़ज़ल भी तेरे बिना हमारी।
तेरी अदा निराली मैं हूँ जवां चितेरा।।