भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुमने चुपके से मुझे बुलाया / हिमांशु पाण्डेय

Kavita Kosh से
Himanshu (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:12, 23 फ़रवरी 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हिमांशु पाण्डेय }} <poem> तुमने चुपके से मुझे बुलाय…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुमने चुपके से मुझे बुलाया ।

पूजा की थाली लेकर
साँझ सकारे
हाथों में, तुम चली
बिखर गयी अरुणाभा दीपक में
चली हवा
साड़ी सरकी
’सर’ से सर से
दीपक भकुआया
कँपती लौ ने संदेश पठाया
तुमने चुपके से मुझे बुलाया ।

कंगन खनका हाथों में
खन खन खन् न् न्
स्वर में, बह चली
गंध गजरे की मन में
काँपी आँखें
बन गई
श्वास-प्रश्वास
सरस सिहरन
मुख-चितवन ने संदेश पठाया
तुमने चुपके से मुझे बुलाया ।

पूर्ण चन्द्रमा-रात बैठकर
मधुरिम स्वर
तुमने गाया, पलकों से
चन्दा से ना जाने क्या बतियाया
मुग्ध हुआ
क्षण-क्षण
मन का
यह आवारापन
झूमा बचपन-सा औ’ संदेश पठाया
तुमने चुपके से मुझे बुलाया ।