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तुमने मान लिया / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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तुम्हें पत्थर कहा
मान लिया
तुमको रूखा कहा
तुमने मान लिया
तुमने वह सब मान लिया
जो तुम नहीं थे।
तुम्हें पता हो कि
वे सब अन्धे थे
उनके नहीं थीं आँखें
शून्य स्पर्श था उनका।
आँखे थीं औरों की
जो दिखाया जाता
वे देखते;
वाणी थी औरों की
जो कहा जाता वे बोलते।
बाट थे किसी और के
जिससे वे अपना सामान तौलते।
बस इस तरह देखते गए
बोलते गए तौलते गए
 और अचानक
पुच्छल तारे की तरह गुम हो गए।
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