भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारी सौंपी यह दुनिया / मालचंद तिवाड़ी

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:53, 16 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मालचंद तिवाड़ी |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>मैं स्पर्श स…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं स्पर्श से बचता हूं
भुरने न लग जाए
दीमक चाटे काठ की मानिंद
यह दुनिया

मैं अँगुली नहीं उठाता
सुराख न हो जाए कहीं
जर्जर पवन की छाती में

मैं पुकारता नहीं तुम्हारा नाम
अनसुनी मेरी पुकार पर
ढेर ना हो जाए सारे शब्द
टूटे हुए खिलौनों की तरह

कैसे बयान करूं
किस एहतियात से संजोये बैठा हूं
तुम्हारे बगैर
तुम्हारी सौंपी यह दुनिया !

अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा