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तुम्हारे चेहरे के नक़्शे को / जगदीश जोशी / क्रान्ति कनाटे
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तुम्हारे चेहरे के
नक्शे को
अपने नख से चितर दूँ मैं ?
तुम्हारी तितिक्षा के आभास को
अमावस के अन्धेरे से
भयावह बना दूँ ?
तुम्हारे स्वजनों के
मटियाले खेतों में उगी विषैली कोंपलों को
जड़ से उखाड़ दूँ ?
तुम्हारे सभ्य समाज में
विचरते वन पशुओं को
दावानल बन जला दूँ,
भस्म कर दूँ ?
मूल गुजराती से अनुवाद : क्रान्ति कनाटे