भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारे नहीं होने / रुस्तम

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:43, 26 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रुस्तम |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poe...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
तुम्हारे नहीं होने, नहीं आने पर मुझे बहुत धीरज से
सोचना है।

तुम नहीं हो, नहीं आओगी मुझसे मिलने — इस ज्ञान को
मुझे बहुत धीरज से पकाना है,
उसे
रस में
बदल जाने देना है।

रस को
धीरे-धीरे,
बहुत धीरज से
सोखना है।