भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारे पास ही रहते न छोड़कर जाते / मुनव्वर राना

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:04, 28 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


तुम्हारे पास ही रहते न छोड़कर जाते
तुम्हीं नवाज़ते<ref>उपकृत करते, मेहरबानी करते</ref> तो क्यों इधर उधर जाते

किसी के नाम से मंसूब<ref>नियोजित,planned</ref> यह इमारत<ref>भवन</ref> थी
बदन सराय नहीं था कि सब ठहर जाते

शब्दार्थ
<references/>