भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम्हारे हिस्से का हरापन / ज्ञान प्रकाश चौबे

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:14, 21 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश चौबे |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> तुम्हारे प…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम्हारे पास
इतना कुछ कैसे है
कैसे है तुम्हारे फेफड़ों में इतनी जगह
कि तुम भर लेती हो
सबके हिस्से की हवा
अपने फेफड़ों में
और कैसे सबके सपनों की चिड़िया
बेखौफ़ तुम्हारी आँखों में उड़ती रहती है

तुम्हारे सपनो का हरापन
किस जादुई तोते में क़ैद है
कहाँ छुपे हैं
तुम्हारी हँसी के मटियारे बादल
चट्टान के किस कोने में
तुम्हारी जड़ें तलाश रही हैं
अपने हिस्से की मिट्टी

किस हहाते झरने के शोर में
छुपे पड़े हैं
पके गेहूँ के बाल सरीखे
तुम्हारे सुनहरे गीत
किस मोड़ पर बिछड़ी तुमसे नदी
किन घरों की छतों पर
टाँक रखा है तुमने
अपना नीला आसमान

बाहर आओ गौरैय्या
निकलकर हँसो एक बार
हँसते हुए खुली धूप में देखो
वो तुम्हारा हरियाआ आँचर नहीं
स्वप्नों का सुलगता अलाव है तुम्हारे लिए

घुलटते शब्द
तुम्हारी उड़ान के पंख नहीं
आकाश में छितराए दानें हैं
और अजूबे की पत्तियों से उगाई गई इच्छाए~म
तुम्हारी जड़ों के खिलाफ़
बेवकूफ़ियों से भरी अमूर्त कल्पनाएँ

बहुत हुआ
चलो
चलो समुद्र के उस पार
उकेरने हवा की नई तस्वीर