भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तू जब से अल्लादिन हुआ / गौतम राजरिशी

Kavita Kosh से
Gautam rajrishi (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:23, 7 मार्च 2016 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तू जब से अल्लादिन हुआ
मैं इक चरा- जिन हुआ

भूलूँ तुझे ? ऐसा तो कुछ
होना न था,लेकिन हुआ

पढ़-लिख हुये बेटे बड़े
हिस्से में घर गिन-गिन हुआ

काँटों से बचना फूल की
चाहत में कब मुमकिन हुआ

झीलें बनीं सड़कें सभी
बारिश का जब भी दिन हुआ

 रूठा जो तू फिर तो ये घर
मानो झरोखे बिन हुआ

आया है वो कुछ इस तरह
महफ़िल का ढ़ब कमसिन हुआ






(अभिनव प्रयास, जुलाई-सितम्बर 2009)