भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तू पीठ सीधी रख ओ लड़की / शार्दुला नोगजा

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:18, 7 सितम्बर 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तू पीठ सीधी रख ओ लड़की
बस आज ये सिंगार कर ले,
स्टील, लोहा, सोना, चांदी
जो मिले, ले रीढ़ मढ़ ले!

तू पीठ सीधी . . .

आज तू काजल लगा ना
अपनी कलम स्याही से भर ले,
झूमर में हैं जो दो सितारे
कर यत्न, आँखों में उतर लें!

तू पीठ सीधी . . .

गूढ़तम जो प्रश्न होगा
लौटेगा अनुत्तरित समझ ले
ना रामशलाकाप्रश्नावली ये जीवन
तू जी इसे, उत्तरित कर ले!

तू पीठ सीधी रख ओ लड़की!

१० नवम्बर ०८