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तू सुधर जा देश मेरे / जगदीश चंद्र ठाकुर

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तू सुधर जा देश मेरे
हम न सुधरेंगे |
दो कदम आगे बढे
फिर दो कदम पीछे मुड़े
सीढियाँ ऊपर चढे
और कुएँ में गिरे
तू निकल जा देश मेरे
हम न निकलेंगे |
आदमी को हम हमेशा
पंक्तियों में बांटते
भाईयों का कत्ल कर
हैं डफलियाँ ले नाचते
तू संभल जा देश मेरे
हम न संभलेंगे |
हम ने घोटाले दिए हैं
तुझको अबतक भेंट में
क्या पता कितना अंटेगा
और मेरे पेट में
तू समझ जा देश मेरे
हम न समझेंगे |