भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तोरा मन दर्पण कहलाये / भजन

Kavita Kosh से
66.25.38.56 (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 03:33, 10 फ़रवरी 2008 का अवतरण

यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तोरा मन दर्पण कहलाये

भले, बुरे सारे कर्मों को देखे और दिखाए


मन ही देवता मन ही इश्वर

मन से बड़ा न कोई

मन उजियारा ,जब जब फैले

जग उजियारा होए

इस उजाले दर्पण पर प्राणी, धूल ना जमने पाए

तोरा मन दर्पण कहलाये .......


सुख की कलियाँ, दुःख के कांटे

मन सब का आधार

मन से कोई बात छुपे न

मन के नैन हजार

जग से चाहे भाग ले कोई मन से भाग न पाये

तोरा मन दर्पण कहलाये ......