भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तोरे पाव परत महामाई हो मोरी अरज सुनो / बुन्देली

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:19, 27 जनवरी 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=बुन्देल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

तोरे पांव परत महामाई हो, मोरी अरज सुनो
माया के तेरे भरे हैं खजाने,
धन दौलत मैया कछु न चाने
बिनती सुनो हमारी हो मोरी अरज सुनो...
दुष्ट दलन जगदम्बा भवानी,
तो सम नहिं मैया कोऊ दानी
करो कृपा हर्षायी हो। मोरी...
नाहिं चाहो मैया महल अटारी
इतनी है बस बिनय हमारी
रहो चरन चितलाई, हो
मोरी अरज सुनो...
सेवक की रक्षा करो माता
बिनय सुनो तुम मेरी माता
जीवन ज्योति जलाई हो। मोरी अरज...