भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थके हुए शहर के लोग / तेजी ग्रोवर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:03, 20 जनवरी 2009 का अवतरण ("थके हुए शहर के लोग / तेजी ग्रोवर" सुरक्षित कर दिया [edit=sysop:move=sysop])

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आख़िरकार
एक थके हुए शहर की ओर भागते हुए लोग
स्वस्थ लग रहे हैं

जामुन हर जगह उतने ही स्याह हैं
जितना सूखे बादल उन्हें कर सकते हैं
घास के कीड़े घास जितने ही हरे
हरा उतना जितना थकान में सम्भव है
भ्रम उतना जितना कि हो सकता है

भागते हुए उनकी थकान उतनी ही है जितनी देह की सामर्थ्य

बुढ़िया किसी अनजाने शब्द का सुमिरन कर रही है

कोई कहता है-
ला, अम्मा, यह चावल हमें दे दे
दो कोस दूर है थका हुआ शहर
तू पहुँच नहीं पाएगी