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था लाखों ने अपने लहू को बहाया / रोहित आर्य

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था लाखों ने अपने लहू को बहाया,
चढ़े फाँसियों पै व सिर को कटाया,
तो उन सब के बलिदान की ही वजह से,
यह आजादी का हमने उपहार पाया॥1॥
यहाँ छोटे बच्चों ने कोड़े थे खाए,
उन्हें मारने में न गोरे लजाये।
मगर देख बच्चों का साहस वह काँपे,
रहे पिटते स्वर इंकलाबी सुनाए।
रहे बोलते माता की जय के नारे,
मगर अपना मस्तक न हरगिज झुकाया॥2॥
था लाखों ने...
दिया देवियों ने था बलिदान अनुपम,
जिसे देख कर कांप उठा था लंदन।
कभी ले के तलवार खुद ही लड़ी थीं,
कभी बन के चंडी समर में खड़ी थीं।
वतन के लिए कोख कुर्बान कर दी,
सुहागों को दे माता का ऋण चुकाया॥3॥
था लाखों ने...
यहाँ वृद्ध जन भी लड़े थे जी जंग में,
लहू को बहाया जवानों के संग में।
वो अँगरेज यह देख कर थे अचम्भित,
जो वृद्धों में बलिदान वाली थी ताक़त।
औ संगीनों सम्मुख अड़ाया जो सीना,
तो उनके पराक्रम से जग थरथराया॥4॥
था लाखों ने...
सुनो नौजवानों की गाथा अनूठी,
थी जिनके कि डर से ये जंजीर टूटी।
बने शेर गोरों के आगे दहाड़े,
औ अंगरेजों के सबने सीने थे फाड़े।
स्वयं हँस के फाँसी के फन्दों को चूमा,
इसे देख लन्दन भी था डगमगाया॥5॥
था लाखों ने...
मिला दण्ड था काले पानी का भारी,
जिसे सुनके ही रूह काँपें हमारी।
रहे भूखे-प्यासे वह कोल्हू चलाते,
औ बेहोश होकर कभी गिर वह जाते।
भयानक सहीं यातनाएँ उन्होंने,
मग़र न कदम अपना पीछे हटाया॥6॥
था लाखों ने...
कभी बर्फ़ पर उनको गोरे लिटाते,
औ ऊपर से कोड़े थे बरसाये जाते।
नमक डालकर उनके घावों पै हरदम,
उन्हें दर्द देकर के तड़पाये जाते।
लहू की बही धार घावों से लेकिन,
न गोरों के आगे ज़रा ख़ौफ़ खाया॥7॥
था लाखों ने...
सुनो मुल्क़ वालों, उन्हें याद करना,
व मस्तक सदा उनके चरणों में धरना।
कभी भूलकर उनको गाली न देना,
औ हर लम्हा बस उनका सम्मान करना।
उन्हीं की बदौलत हैं खुशहाल हम सब,
उन्होंने ही भारत को सुन्दर बनाया॥8॥
था लाखों ने...
न कहना कि आजादी चरखे से आई,
ये आज़ादी तो है लहू में नहाई।
थे लाखों कटे, फाँसियों पै चढ़े तब,
मेरे देश ने है ये आज़ादी पाई।
उन्हीं वीरों के गीत गाने की ख़ातिर,
है "रोहित" ने अपनी कलम को चलाया॥9॥
था लाखों ने...