भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

थ्वोडा़ हौर प्वथलों स्योण द्या / जयवर्धन काण्डपाल

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:12, 26 जुलाई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जयवर्धन काण्डपाल |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

थ्वोडा़ हौर प्वथलों स्योण द्या
घाम औंण द्या उजाळु ह्वोण द्या
सुबेरि सुबेरी उठी, ढुंगा न फ़रा
डाळ्यों ते बि निन्द मा रोण द्या
यि फ़ल तुमुनें त खाण आखिर मा
अबि हर्यां छन पीलु रंग ओण द्या
तेकु मन हळ्कु ह्वे जालु थ्वौड़ा
तैकु कंठ भर्यूं ते ते रवोण द्या
आज सु चुप ह्वयूं भौत दिनु बटि
आज ते अपणि बात बिगोण द्या|