भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ददरिया / चंद्रशेखर चकोर

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:21, 13 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चंद्रशेखर चकोर |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तंय कुहुक झन कोइली,
सुहावत नइये बोली।

बइठे गोबरहिन बमभूर छईहा।
मोर खेती हे झुख्खा आंखी म लईहा॥

कउहा म खोंधरा झुलत हे डोरी।
का मंगईया बनंव के करंव चोरी।

ठों ठों हे दर्रा भरकाहा नहर।
का खेती ल बेंचसी जावंव सहर॥

अइलाहा धान अउ हरियर कांसी
का लईका सुवारी संग लगा लंव फांसी।

ठुड़गा त ठाढ़े गाहदे रुख हे चूप।
होगे जिनगी भंवर अउ दुनिया कुलूप ॥

नवा है भांड़ी चिकन परदा।
ये दे भट के मन देवता देखा दे निक रद्दा॥